बहु संज्ञान का सृजनात्मकता पर प्रभाव का अध्ययन
डा. शिखा त्रिपाठी
सह प्राध्यापक एकेएस विश्वविद्यालय सतना मध्य प्रदेश
प्रस्तावना
बहुसंज्ञान विज्ञान क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण विषय है जिसका संदर्भ मनोविज्ञान, जीवनिक विज्ञान, और कंप्यूटर विज्ञान में होता है। इसका अध्ययन और विकास विभिन्न क्षेत्रों में सृजनात्मकता को प्रेरित कर सकता है। बहुसंज्ञान के प्रयोग से समस्याओं का हल खोजने के लिए क्रिएटिव अनुमान, अद्भुत अनुसंधान, और नई तकनीकी उपाय विकसित किए जा सकते हैं। इसके लिए नए उपायों, उत्पादों, और सेवाओं का निर्माण किया जा सकता है जो समाज को सीधे या अप्रत्याशित तरीकों से लाभ पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, इसका अध्ययन और उपयोग सृजनात्मक सोच और नए विचारों को प्रोत्साहित कर सकता है, जो समाज में नई और अद्वितीय दिशाएँ प्रदान कर सकते हैं।“यह शोध पत्र लैटिन–अमेरिकी, यूरोपीय और एशियाई विद्यार्थियों के बीच बहुसंज्ञान का प्रयोग और उनकी सृजनात्मकता पर प्रभाव की एक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है। सैंपल शैक्षिक संस्थानों से विद्यार्थियों का चयन किया गया और उन्हें सवालनामा और बहुसंज्ञान से संबंधित कार्यक्रमों का समीक्षात्मक अध्ययन किया गया।
“बहुसंज्ञान (Multisensory) का अर्थ है एक समय में अधिक से अधिक भौतिक इनपुट का संयोजन। यह आवाज, दृश्य, स्पर्श, स्वाद, और गंध जैसे विभिन्न इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त जानकारी का एक साथ उपयोग करने की क्षमता होती है। इससे हमारा अनुभव और समझ गहरा और समृद्ध “
“बहुसंज्ञान की परिभाषा है – इंसान के इन्द्रियों के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने की क्षमता, जो एक से अधिक इंद्रियों का संयोजन करके होती है। इसमें आवाज, दृश्य, स्पर्श, स्वाद, और गंध के अनुभव शामिल हो सकते हैं। यह विज्ञान और मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है और हमारे अनुभव को समृद्ध बनाता है।“
“सृजनात्मकता का अर्थ है नए और अनोखे विचार, आविष्कार, या विचारों की रचनात्मकता। यह एक व्यक्ति या समूह की क्रियात्मकता और अद्वितीयता को दर्शाता है, जिससे नए उत्पाद, कला, या विज्ञानिक अनुसंधान उत्पन्न होता है। इसमें नए विचारों की उत्पत्ति, समस्याओं के नए समाधान, और सर्जनात्मक प्रक्रियाओं के माध्यम से नए और मौलिक धारणाओं का निर्माण शामिल होता है।“
“सृजनात्मकता की परिभाषा है – यह उस क्रियात्मकता और अद्वितीयता की व्यक्ति या समूह की गुणवत्ता होती है जो नए और अनोखे विचार, आविष्कार, या कला को रचनात्मक रूप से प्रकट करता है। यह नवीनता, अद्यतन, और मौलिकता का प्रमुख स्रोत होता है जो समाज, कला, विज्ञान, और तकनीकी क्षेत्रों में प्रेरित करता है। इससे नई और अनोखी धारणाएँ, उत्पाद, या प्रणालियाँ उत्पन्न होती हैं जो मानव समाज को सुधारती हैं और उसे अग्रणी बनाती हैं।“
कुंजी शब्द: बहु संज्ञान, सृजनात्मकता , सरकारी विद्यालय, निजी विद्यालय।
उद्देश्य
“बहुसंज्ञान के विद्यार्थियों की सृजनात्मकता पर प्रभाव का मुख्य उद्देश्य उन्हें नए सोचने की क्षमता और नवाचार की प्रेरणा प्रदान करना है
यह उन्हें अनुभव, विवेक, और समस्या समाधान के लिए नवीनतम तकनीकों का उपयोग करने की प्रेरणा देता है।
बहुसंज्ञान के माध्यम से, विद्यार्थी समाज में नए और सर्वोत्तम समाधानों की खोज में सक्षम होते हैं, जिससे उनकी सृजनात्मकता में वृद्धि होती है और उन्हें अधिक उत्कृष्ट और समर्थक नागरिक बनाने में मदद मिलती है।
बहुसंज्ञान के विद्यार्थियों की सृजनात्मकता पर प्रभाव का मुख्य उद्देश्य उन्हें नए और अद्वितीय दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करना है।
इसके माध्यम से, विद्यार्थियों को नवीनतम तकनीकी और विज्ञान की जानकारी प्राप्त होती है
उन्हें संज्ञान और समस्याओं का समाधान करने के लिए उत्प्रेरित किया जाता है।
इसके परिणामस्वरूप, वे अनुभव, सोचने की क्षमता, और स्वयंसिद्ध नए और आधुनिक आदर्शों के साथ सृजनात्मक रूप से सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रेरित होते हैं।
इस प्रकार, बहुसंज्ञान उन्हें सोचने और कार्रवाई करने के लिए विशेष रूप से सजग बनाता है, जिससे वे समाज में उत्कृष्टता और प्रगति का साथी बन सकते हैं।
उन्हें नए और अद्वितीय दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करना है।
इसके माध्यम से, विद्यार्थियों को नवीनतम तकनीकी और विज्ञान की जानकारी प्राप्त होती है
उन्हें संज्ञान और समस्याओं का समाधान करने के लिए उत्प्रेरित किया जाता है।
इसके परिणामस्वरूप, वे अनुभव, सोचने की क्षमता, और स्वयंसिद्ध नए और आधुनिक आदर्शों के साथ सृजनात्मक रूप से सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रेरित होते हैं।
इस प्रकार, बहुसंज्ञान उन्हें सोचने और कार्रवाई करने के लिए विशेष रूप से सजग बनाता है, जिससे वे समाज में उत्कृष्टता और प्रगति का साथी बन सकते हैं।“
परिकल्पना
सरकारी विद्यालय की छात्र–छात्राओं पर बहुत संज्ञान के आधार पर सृजनात्मक में सार्थक अंतर नहीं है।
निजी विद्यालयों के छात्र–छात्राओं की बहुसंज्ञान के आधार पर सृजनात्मक में कोई सहायता का अंतर नहीं है।
सरकारी एवं निजी विद्यालयों में अध्यनरत छात्र–छात्राओं की बहू संज्ञान के आधार पर सृजनात्मक में कोई सहायक अंतर नहीं है।
परिसीमन
सतना जिले की सरकारी एवं निजी विद्यालय का यादृश्चिक विधि से चयन कर 50 छात्र एवं 50 छात्रों को प्रत्येक से चयनित किया गया है।
संवेदनशील परिवर्तन कारक
“बहुसंज्ञान के उपयोग से विद्यार्थियों की सोच और क्रिएटिविटी में संवेदनशील परिवर्तन होता है। इसके कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
विस्तृत जानकारी:
बहुसंज्ञान के माध्यम से, विद्यार्थी विभिन्न विषयों और विषयों के विस्तृत ज्ञान से परिचित होते हैं, जो उन्हें नई और संवेदनशील सोच का संवर्धन करता है।
समस्या समाधान:
बहुसंज्ञान उन्हें समस्याओं को समझने और समाधान करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे उनकी सोच और नवाचार में वृद्धि होती है।
“सहयोग और अभिप्राय:
बहुसंज्ञान विद्यार्थियों को अपने विचारों और अभिप्राय को अधिक संवेदनशीलता के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो उनकी क्रिएटिविटी को बढ़ाता है।
इन सभी कारकों के संयोजन से, विद्यार्थियों की सोच और क्रिएटिविटी में संवेदनशील परिवर्तन होता है, जो उन्हें अधिक नवाचारी और सकारात्मक बनाता है।
न्यायादर्श
न्यायादर्श के रूप में सतना जिले के नागौद शहर के चार उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्यनरत 100 छात्र –छात्राओं का चयन किया गया है । जिनमें 50 छात्र सरकारी एवं 50 छात्राएं निजी विद्यालय से चयनित की गई है।
शोध विधि – प्रस्तुत अनुसंधान कार्य हेतु शोधकर्ता द्वारा सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया है। तथा सृजनात्मक ता के अध्ययन हेतु स्व निर्मित प्रश्नावली का प्रयोग किया गया है।
विश्लेषण एवं व्याख्या
प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर यह ज्ञात हुआ कि
सरकारी विद्यालय | विद्यार्थी संख्या | माध्यम मान | प्रमाप विचलन | टी परीक्षण |
छात्र | 25 | 114.40 | 19.92 | 2.49 |
छात्र | 25 | 99.76 | 21.59 |
सरकारी विद्यालयों की छात्र–छात्राओं की सृजनात्मकता संबंधी मध्यमान एवं टी मान 0.05 स्तर के सारणीमान 1.96 से कम पाए गए। इससे ज्ञात होता है कि सरकारी विद्यालयों की छात्र–छात्राओं की बहू संज्ञान के आधार पर सृजनात्मकता में सार्थक अंतर नहीं है अतः परिकल्पना एक स्वीकृत है।
निजी विद्यालय | विद्यार्थी संख्या | माध्यम मान | प्रमाप विचलन | टी परीक्षण |
छात्र | 25 | 91.80 | 13.96 | 3.63 |
छात्राएं | 25 | 106.16 | 21.06 |
उपरोक्त अध्ययन से प्राप्त होता है कि निजी विद्यालयों में अध्ययनरत छात्र–छात्राओं की बहू संज्ञान के आधार पर सृजनात्मकता में मध्यमान एवं टीमान 0.05 स्तर की सारणी मन 1.96 से कम पाए गए इससे ज्ञात होता है कि दोनों की सृजनात्मकता में सार्थक अंतर नहीं है अतः परिकल्पना दो भी स्वीकृत की जाती है ।
विद्यालय | विद्यार्थी संख्या | माध्यममान | प्रमाप विचलन |
सरकारी | 50 | 63.90 | 9.43 |
निजी | 50 | 68.30 | 11.29 |
उपरोक्त अध्ययन से ज्ञात होता है कि सरकारी विद्यालय में अध्यनरत छात्र छात्राओं की सामूहिक मध्यमान एवं एवं निजी विद्यालयों में अध्ययन छात्र–छात्राओं की सृजनात्मक संबंधी सामूहिक मध्य मन में अंतर है अतः स्पष्ट होता है की तुलनात्मक रूप से निजी विद्यालयों के अध्ययन छात्र–छात्राओं की सृजनात्मक तक क्षमता अधिक होती है उनका प्रदर्शन अच्छा है।
परिणाम एवं निष्कर्ष
“बहुसंज्ञान के विद्यार्थियों की सृजनात्मकता पर प्रभाव के प्रमुख परिणाम और चर्चा में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को शामिल किया जा सकता है:
नई और नवाचारी सोच: बहुसंज्ञान के उपयोग से, विद्यार्थी नई और नवाचारी सोच विकसित करते हैं
जो समस्याओं के समाधान में मददगार होती है। यह उन्हें उत्प्रेरित करता है और उनकी सृजनात्मकता को बढ़ाता है।
“समाधान निर्माण: बहुसंज्ञान के उपयोग से, विद्यार्थी अलग–अलग समाधानों को विचार करते हैं और उन्हें प्रयोग करके विभिन्न समस्याओं का समाधान करते हैं।
सामाजिक प्रभाव: बहुसंज्ञान के उपयोग से, विद्यार्थी सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए सोचते हैं और सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं।
अधिक उत्कृष्टता: बहुसंज्ञान के प्रयोग से, विद्यार्थी अपनी उत्कृष्टता को संवेदनशीलता और समाधान के साथ विकसित करते हैं।
इन प्रमुख परिणामों के साथ, बहुसंज्ञान विद्यार्थियों को सोचने और कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करता है, जो उन्हें समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद करता है।“
संदर्भ ग्रंथ सूची
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